पुराना वाहन बेचने पर ट्रांसफर नहीं करवाए तब क्या नुकसान हो सकते हैं !

किसी भी पुराने वाहन को जिस डेट को बेचा जाता है उससे चौदह दिनों के भीतर खरीदने वाले व्यक्ति को उस वाहन को अपने नाम पर दर्ज़ करवाना होता है। यह प्रावधान मोटर व्हीकल एक्ट,1988 की धारा 50 के अंतर्गत दिए गए हैं। अगर खरीदने बेचने की स्टेट अलग अलग है तो ऐसी अवधि 45 दिनों तक हो सकती है।

इसे वाहन के स्वामित्व का ट्रांसफर कहा जाता है। कोई लेखपढ़ यदि स्टांम्प पर की जाती है तो वह केवल चौदह दिनों तक ही वैध होगी क्योंकि चौदह दिनों के भीतर ही उस वाहन का स्वामित्व ट्रांसफर करवाना होता है।

यदि बेचा गया वाहन खरीदने वाले के नाम पर ट्रांसफर नहीं करवाया जाता है तब वह वाहन उसके पहले मालिक के नाम पर ही दर्ज़ होता है। किसी भी वाहन से अनेक तरह के अपराध संभव हैं। ऐसी सूरत में अपराधों में वाहन का मूल मालिक भी आरोपी बनाया जा सकता है। मालिक केवल स्टांम्प की लेखपढ़ के आधार पर यह नहीं कह सकता है कि वाहन उसके द्वारा बेचा जा चुका है। जिस व्यक्ति के पास वाहन का स्वामित्व है उसके ही पास वाहन का कब्ज़ा भी होना चाहिए।

यदि ऐसे वाहन से कोई तीसरा व्यक्ति शराब इत्यादि प्रतिबंधित अपराधों के आरोप में पकड़ा जाता है तब वाहन का मूल मालिक भी पुलिस द्वारा आरोपी बना दिया जाता है क्योंकि वाहन का कब्ज़ा उसे अपने पास रखने की जिम्मेदारी थी, उसके नाम पर दर्ज़ वाहन किसी अपराधी के पास जाता है और वह उससे अपराध कारित कर देता तब मूल मालिक पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा होता है।

आजकल सड़क हादसे आम बात हो गई है। किसी भी थाना क्षेत्र के अंतर्गत अनेक सड़क हादसे रोज़ होते हैं। इस तरह बेचे गए और ट्रांसफर नहीं करवाए गए वाहन से यदि कोई सड़क हादसा हो जाता है तब हादसे की गंभीरता के अनुरूप अपराध धारा दर्ज़ की जाती है। ऐसी धाराएं आईपीसी 279,337,338 एवं 304(ए) हैं जहाँ मामूली चोट से लेकर मृत्यु होने तक की धाराएं हैं।

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ऐसे हादसों के बाद दो तरह के प्रकरण बनते हैं। एक प्रकरण तो आपराधिक प्रकरण होता है जो ड्राइवर पर चलाया जाता है, कभी कभी ऐसे प्रकरण परिस्थितियों को देखकर मालिक पर भी बना दिए जाते हैं। इन अपराधों में सज़ा का प्रावधान है जो जुर्माने से लेकर दो साल तक के कारावास तक की है।

इसमें दूसरा प्रकरण सिविल प्रकरण बनता है जो मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 166 के अंतर्गत मुआवजे हेतु पीड़ित या पीड़ित के वारिसों द्वारा लगाया जाता है। ऐसा मुआवजा क्षति के आधार पर लगाया जाता है जो पीड़ित व्यक्ति की आय को देखते हुए उसको होने वाली नुकसानी के आधार पर तय होता है। इस हेतु वाहन का थर्ड पार्टी बीमा होता है, ऐसी नुकसानी की क्षतिपूर्ति बीमा कंपनी द्वारा की जाती है लेकिन यदि वाहन का बीमा नहीं है तब क्षतिपूर्ति की ज़िम्मेदारी मालिक पर भी डाली जा सकती है और पीड़ित व्यक्ति को होने वाली नुकसानी मालिक से दिलवाई जाती है।

आजकल सड़क हादसों में मरने वाले लोगों आश्रित परिजनों को आय के अनुसार अधिक से अधिक मुआवजा राशि दिलवाई जा रही है। जिस व्यक्ति की आय अधिक है उसकी सड़क हादसे में मृत्यु होने पर परिजनों को अधिक से अधिक मुआवजा मिलता है। बीमा नहीं होने की सूरत में मुआवजा वाहन के मूल मालिक को देना होता है क्योंकि वाहन का बीमा करवाना मालिक की जिम्मेदारी है।

यदि वाहन खरीदने वाला ट्रांसफर नहीं करवाए तब मालिक क्या कर सकता है

यदि ऐसा वाहन खरीदने वाला व्यक्ति उसे ट्रांसफर नहीं करवाए तो मूल मालिक की यह जिम्मेदारी है कि वह उसे ट्रांसफर करवाने हेतु सूचना पत्र प्रेषित करें। ऐसा सूचना पत्र रजिस्टर्ड डाक द्वारा प्रेषित किया जाना चाहिए और वाहन खरीदने वाले व्यक्ति को तत्काल वाहन अपने नाम पर ट्रांसफर करवाने की चेतावनी देनी चाहिए। साथ ही वाहन का कब्ज़ा भी मांगना चाहिए फिर भी यदि वह व्यक्ति वाहन अपने नाम पर ट्रांसफर नहीं करवाए तो एक आवेदन क्षेत्रीय परिवाहन कार्यालय के समक्ष करना चाहिए। उन्हें वाहन का रजिस्ट्रेशन निरस्त करने हेतु निवेदन करना चाहिए। वाहन का मालिक खरीदने वाले के विरुद्ध आपराधिक और सिविल मुकदमा भी लगा सकता है।