चांद पर जानें में पूरी दुनिया क्यों लगी है?

चांद और पृथ्वी के बीच की दूरी औसत 384,400 किमी है। पृथ्वी पर यह मौसम से जुड़ी घटनाओं के पीछे जिम्मेदार है। वर्तमान में माना जाता है कि करोड़ों साल पहले एक विशाल पिंड हमारी पृथ्वी से टकरा गया। इसके मलबे से चंद्रमा का निर्माण हुआ। चंद्रमा का एक दिन पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है।

जब दिन होता है तो यहां तापमान 127 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। वहीं पूरी तरह छाया में यहां तापमान माइनस 173 डिग्री तक होता है। चांद पर पानी है, जिसके हाइड्रोक्सिल अणुओं के बारे में 2008 में भारत के चंद्रयान ने पता लगाया था।

अमेरिका, चीन और भारत सहित प्रमुख महाशक्तियां पृथ्वी के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह में मौजूद तत्वों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाहती हैं। भारत ने चंद्रयान तीन मिशन भेजा है। वहीं नासा का लक्ष्य है कि आर्टेमिस प्रोग्राम के तहत इंसानों को एक बार फिर चंद्रमा पर भेजा जाए।

इस बीच रूस ने 47 साल बाद अपना पहला चंद्रमा लैंडिंग अंतरिक्ष यान लूना-25 लॉन्च किया। रूस ने कहा है कि वह आगे और भी चांद मिशन लॉन्च करेगा। इसके साथ ही रूस ने कहा है कि उसकी योजना चीन के साथ मिल कर इंसानों को चांद पर भेजने की है। नासा भी इसकी माइनिंग से जुड़ी संभावनाओं को खोजना चाहता है।

चांद पर जानें में पूरी दुनिया क्यों लगी है?
Photos Credit Google
चांद के पानी का क्या होगा?

पानी जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इसके अलावा स्पेस एजेंसियां अंतरिक्ष में लंबी यात्रा करना चाहती हैं। पानी से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अलग करके रॉकेट फ्यूल भी बनाया जा सकता है। मंगल पर इंसानों को भेजने को लेकर जो थ्योरी दी जाती है, उसके मुताबिक चांद एक लॉन्च पैड होगा। पृथ्वी से पहले रॉकेट चांद पर जाएंगे। इसमें फ्यूल भरा जाएगा और यहां से मंगल पर जाएंगे। इसके अलावा हीलियम-3 चांद पर है, जो पृथ्वी पर बेहद दुर्लभ है। नासा का कहना है कि 30 लाख टन हीलियम-3 चांद पर मौजूद है।

ALSO READ:-  Negative Thoughts से दूर रह सकते हैं
चांद पर मौजूद हैं दुर्लभ खनिज

यूरोपीय स्पेस एजेंसी के मुताबिक हीलियम तीन का इस्तेमाल परमाणु ऊर्जा में किया जा सकता है। लेकिन इसकी खासियत ये है कि यह रेडियोएक्टिव नहीं होता, जिससे यह खतरा पैदा नहीं करता। इसके अलावा स्मार्टफोन, कंप्यूटर, एडवांस टेक्नोलॉजी से जुड़े खनिज चांद पर मौजूद हैं। लेकिन खनन कैसे होगा इसकी कोई सही जानकारी नहीं है। लेकिन फिर भी माना जाता है कि इसके लिए किसी तरह की बस्तियां बसानी पड़ेंगी।