‘जम्मू-कश्मीर’ बिना शर्त भारत में हुआ था विलय- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी.आर.गवई और जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल हैं। पीठ ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता है कि अनुच्छेद 370 के बाद जम्मू-कश्मीर में संप्रभुता के कुछ तत्व बरकरार रखे गए थे।
चीफ जस्टिस ने कहा, “एक बात बिल्कुल स्पष्ट है कि भारत के साथ जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता का कोई सशर्त समर्पण नहीं हुआ है। संप्रभुता का समर्पण परिपूर्ण था। एक बार जब संप्रभुता पूरी तरह से भारत में निहित हो गई, तो एकमात्र प्रतिबंध (राज्य के संबंध में) कानून बनाने की संसद की शक्ति पर था।” उन्होंने कहा, “हम अनुच्छेद 370 के बाद के संविधान को एक दस्तावेज के रूप में नहीं पढ़ सकते हैं जो जम्मू-कश्मीर में संप्रभुता के कुछ तत्वों को बरकरार रखता है।”
सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 को हटाने के खिलाफ दाखिल याचिक पर सुनवाई के दौरान कहा कि बिना किसी शर्त के जम्मू-कश्मीर का विलय भारत में हुआ था और यह अपने आप में परिपूर्म था। चीफ जस्टिस डी.वाई.चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अक्टूबर 1947 में पूर्व रियासत के विलय के साथ जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता का भारत को समर्पण “परिपूर्ण” था और यह कहना “वास्तव में मुश्किल” है कि संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत पूर्ववर्ती राज्य को मिला विशेष दर्जा स्थायी प्रकृति का था।
अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं का तर्क यह है कि विलय पत्र के तहत, भारत सरकार को केवल रक्षा, संचार और बाहरी मामलों को संभालने का अधिकार था। याचिकाकर्ताओं में से एक, जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील जफर शाह ने कहा कि संवैधानिक रूप से पूर्ववर्ती राज्य के वास्ते कोई कानून बनाने के लिए केंद्र सरकार या राष्ट्रपति के पास कोई शक्ति निहित नहीं है।
मामले की सुनवाई के पांचवें दिन बहस कर रहे शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के विपरीत, अन्य राज्यों के संबंध में कानून बनाने के लिए न तो परामर्श और न ही सहमति की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, “राज्य की संवैधानिक स्वायत्तता अनुच्छेद 370 में अंतर्निहित है।”